कीसी भी सभ्यता के पनपने के लिए राजनयिक, आर्थिक व धार्मिक घटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ईनमेसे कीसीएक का प्राबल्य या अभाव ऊस सभ्यताओं को अस्थीर कर देता है।
धार्मिक व राजनयिक मान्यताए कालानुरुप बदलती रहती है, ईनका समाज पर प्रभाव घटता बढ़ता है मगर ईनके पीछे जो शक्ति काम करती है वो नश्चीतही आर्थिक ही होती है।
दुनिया भर में जो फसाद, युद्ध या महायुद्ध हुए है वे सारे आर्थिक प्रभाव कायम करने के लिए ही हूए है।
हमारा भारत यह सप्तसींधु प्रदेश हमेशा ईन तिनो में अग्रगणी रहा है। दुनिया भर के लोग यहां व्यापार करने के लिए ऊत्साही रहे हैं, इसी कारण वश ईसे हथीयाने के लिए बहुतोने एडी चोटी का जोर लगाया है। यहां सत्तारूढ़ होने के लिए विवीध प्रकार, सभ्यता, जाती, धर्म व भौगोलिक प्रदेशों से शासक हुए व सभीने अपना अपना प्रभाव भी कायम कीया मगर एक तबका ऐसा भी रहा जो ईनसे जुडा रहने के बावजूद भी अछूता रहा, जीसने सत्ताकारण मजबूत कीया मगर ऊसपर प्रभाव कायम नहीं कीया वो है यहां का कारोबारी, कलाकारी, कारागिरी उद्यमशील प्रवर्ग।
किसीने ईन्हे वैश्य कहा, कीसी ने बलुतेदार, Artisans , बहुजन, सवर्ण, ओबीसी वगैरा वगैरा कीसी भी शासक, सत्ता या धर्मोने ईनके कामों में दखलंदाजी नहीं की सीवाय आज के आधुनिक पुंजीवाद के, जीसने ये कारागिरी उद्यमशील व्यवस्था नष्ट कर पुंजिवादी औपनीवेश बनाना आरंभ कर दीया है।
Industrial Revolution में मजदुरोकी जरुरत पुरी करने के लिए गुलाम व नौकरशाह तय्यार करने पडे जो की आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने बखूबी बना दीए, तत्कालीन जितने भी समाज सुधारक हुए जिन्होने आधुनिक शिक्षा की पैरवी की क्या वे ईस छुपे उद्देश्य को नही जान पाये? इसका जवाब ऊन्हे नवाजे गये पुरस्कार व सम्मान में मीलेगा।
बहरहाल ये तो मानना पड़ेगा अंग्रेजी सत्ता ने भारतीय अर्थव्यवस्था बदल कर रख दी जो पहले ईन व्यावसायिक जन जातीयोके हाथ में थी वो बैंक व पुंजीवादीयोके हाथ थमा दी। आज भारत के स्वयंपुर्ण देहात परावलंबी हो चुके है, बचत पर यकीन करने वाली जनता कर्जा ढो रही है। व्यवसाय व व्यापार खतम हो चुका हैं व्यवसायी जतोयोको हिन भावना से ग्रस्त बना दिया गया है, अब अगला निशाना किसान हैं।
कीसान व ऊनकी जमीन बहोत बड़ी संपत्ति है जो इनकी भेट नहीं चढ़ी है, कीसान आत्महत्याए सूचक है, पुंजीपती धड़ल्ले से जमीनें खरीदे जा रहे है, संभल जाओ।
©प्रतिक पुरकर, नागपुर